धार, मध्य प्रदेश के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित है, धार जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह इंदौर डिवीजन का एक हिस्सा है। धार का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 8153 वर्ग किमी है। और इस प्रकार यह मध्य प्रदेश के सबसे बड़े जिलों में से एक है।
जिले में आठ राजस्व ब्लॉक (तहसील) शामिल हैं। धार, कुक्षी, बदनवर, सरदारपुर, गंधवानी, मनावर, धरमपुरी और दही।
इसके आगे धार, नालछा, तिरला, सरदारपुर, बदनवर, कुक्षी, दही, बाग, निसरपुर, धरमपुरी, मनावर, गंधवानी और उमरबन में 13 विकास खंड हैं।
धार में 1625 राजस्व गाँव हैं जिनमें 1326 पटवारी हलके हैं। धार में ग्राम पंचायतों की कुल संख्या 761 है।
जिला प्रशासन का प्रमुख जिला कलेक्टर होता है जिसे विभिन्न लाइन और कर्मचारी पदाधिकारियों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। वह विकास और कानून और व्यवस्था कार्यों सहित समग्र शासन के प्रभारी हैं।
धार ज़िले का इतिहास
परमारों ने नवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक मालवा के समीपवर्ती विशाल क्षेत्रफल पर 400 वर्षों तक राज्य किया । वाक्यपति मुंज तथा भोजदेव इस राजवंश के प्रसिद्ध शासक थे । मुंज एक महान सेनापति, एक प्रख्यात कवि तथा कला एवं साहित्य का महान संरक्षक था । उसके दरबार में धनंजय, हलायुध, धनिक, नवसाहसांक चरित के लेखक पद्मगुप्त, अमितगति आदि जैसे कवि थे । उसने धार तथा माण्डू में मुंज सागर खुदवाया तथा अनेक स्थानों पर सुंदर मन्दिर बनवाये ।
परमारों में सबसे अधिक प्रसिद्ध भोजदेव प्राचीन भारत का एक यशस्वी राजा था । उसका नाम भारत में न केवल सैनिक रूप में बल्कि एक निर्माता, एक विद्धान तथा एक लेखक के रूप में एक की जुबान पर है । वह व्याकरण, खगोलशास्त्र, काव्यशास्त्र, वास्तुकलाऔर योग जैसे भिन्न-भिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकों का रचयिता था । उसने अपनी राजधानी उज्जैन से धार स्थानांतरित कर दी थी, जहां उसने संस्कृत के अध्ययनके लिये एक विश्वविघालय की स्थापना की थी । इसे भोजशाला कहा जाता है, जिसमें सरस्वती देवी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित थी । उसने धार का पुर्ननिर्माण किया तथा भोपाल के पास भोजपुर की स्थापना की तथा भोजपुर स्थित भव्य मन्दिर सहित अनेक शिव मन्दिरों का निर्माण किया । भोज ने भोजपुर के पास एक बड़े जलाशय का भी निर्माण किया ।
सन् 1305 ई. में धार तथा माण्डू पर अधिकार करते ही सम्पूर्ण मालवा अलाउद्दीन खिलजीके हाथों में आ गया । धार मुहम्मद द्वितीय के शासन काल तक दिल्ली के सुल्तानों के अधीन रहा । उस समय दिलावर खान घुरी मालवाका सूबेदार था । 1401 ई. में उसने शासन की बागडोर संभाली तथा स्वंतत्र मालवा राज्य की स्थापना की तथा उसने धार को अपनी राजधानी बनाया । उसके पुत्र तथा उत्तराधिकारी होशंगशाह ने धार को हटाकर माण्डू को अपनी राजधानी बनाया । ई. 1435 में होशंगशाह की मृत्यु हो गयी तथा उसे एक शानदार मकबरे में दफनाया गया, जो आज भी माण्डू में विघमान है । होशंगशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र गजनी खान उसका उत्तराधिकारी बना । उसने आदेश दिया कि उसकी राजधानी माण्डू को शादियाबाद (हर्षोल्लास कास शहर) कहा जाये तथापि उसने बहुत कम राज्य किया तथा ई. 1436 में महमूद खिलजी ने उसे जहर देकर मार डाला । महमूद खान गद्दी पर बैठा तथा उसने मालवा में खिलजी सुल्तानों की नींव डाली । खिलजी सुल्तान ई. 1531 तक मालवा पर राज्य करते रहे । बाद में मालवा पर शेरशाह का अधिकार हो गया तथा उसे शुजात खां के प्रभार में रखा गया । शुजात खां का उत्तराधिकारी उसका पुत्र बाज बहादुर हुआ । माण्डू तथा उसके आसपास रूपमती और बाज बहादुर के रोमांस की कहानियां गूंजती थीं । जब बाज बहादुर परास्त हो गया तथा मुगल सेना द्वारा उसे खदेड़ दिया गया तब उसकी प्रेमिका रूपमती ने अपमानसे बचने के लिये जहर खाकर अपनी जान दे दी ।
अकबर के प्रशासनिक संगठन में धार, मालबा सूबा के अन्तर्गत माण्डू सरकार में महाल का मुख्य नगर था । अकबर दक्षिण पर आक्रमण का संचालन करते समय सात दिन तक धार में रहा । वह कई बार माण्डू भी गया । माण्डू शहंशाह जहांगीर का भी मनपसंद सैरगाह था, जो ई. 1616 में छ: माह से अधिक यहां रहा । जहांगीर ने माण्डू की अच्छी जलवायु और सुन्दर दृश्यों की बहुत प्रशंसा की है । नूरजहां ने माण्डू के पास हाथी पर सवार होकर छह गोलियों से चार चीतों का शिकार किया ।
जब ई. 1832 में बाजीराव पेशवा ने मालवा को सिंधिया, होलकर तथा तीन पवार सरदारों में बांट दिया तब धार आनन्द राव पवार को दे दिया गया । 1857 की महान क्रान्ति के बाद, तीन वर्षों की संक्षिप्त अवधि को छोड़कर 1948 तक इस क्षेत्र पर धार के शासकों का शासन बना रहा ।
स्त्रोत : जनसम्पर्क विभाग